श्‍याम \भजन \- हार जाता हूं

हार जाता हूं मैं हार जाता हूं.… हर बार मैं खुद को लाचार पाता हूं, तेरे रहये क्यूं बाबा मैं हार जाता।। हर कदम क्या यूं ही मैं ठोकर खाऊंगा, बस इतना कह दे श्याम कभी जीत ना पाऊंगा, तेरी चौखट पे मं क्या बेकार आता हूं.... हर बार मैं खुद को लाचार पाता हूं।। क्यूं अपने वादे को तू भूला बिसरा है, हारा हुआ ये प्राणी चरणो मे पसरा है, तेरा वादा याद दिलाने तेरे द्वार आया हूं... हर बार मैं खुद को लाचार पाता हूं।। मेरे साथ खड़ा हो जा बस इतना ही चाहूं, जीवन कि बाजी फिर मैं हार नही पाऊं, अरमां ये हर्ष लिये हर बार आता हूं... हर बार मैं खुद को लाचार पाता हूं। तेरे रहते क्यूं बाबा मैं हार जाता हूं।।

कैसे कह दूं

कैसे कह दूं वो बाते जो उसे कहनी है.....
वो कहनी नही आती,
मुझे उससे मोहब्‍बत है, ये कहना है......
पर उससे ये बात कहनी नही आती।।

बड़ी मासूम है मुस्‍कान उसकी,
बातें बड़ी अल्‍हड़ भरी,
मदहोश सी नजरें है, ये सारी बातें है.....
उसे बताने के लिये,
पर ये सारी बातें उसे बतानी नही आती।।

मुझे उससे मोहब्‍बत है, ये कहना है....
पर उससे ये बात कहनी नही आती।।

वो उसकी नाराजगी भरा अंदाज,
वो लड़ना बात-बात पे,
वो हर बात मनाने के तरीके हजार अपनाना,
हमें है पसंद ये बातें.....
पर ये सारी पसंद उनकी....
हमें उन्‍हे बतानी नही आती,

मुझे उससे मोहब्‍बत है, ये कहना है......
 
पर उससे ये बात कहनी नही आती।।

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