श्‍याम \भजन \- हार जाता हूं

हार जाता हूं मैं हार जाता हूं.… हर बार मैं खुद को लाचार पाता हूं, तेरे रहये क्यूं बाबा मैं हार जाता।। हर कदम क्या यूं ही मैं ठोकर खाऊंगा, बस इतना कह दे श्याम कभी जीत ना पाऊंगा, तेरी चौखट पे मं क्या बेकार आता हूं.... हर बार मैं खुद को लाचार पाता हूं।। क्यूं अपने वादे को तू भूला बिसरा है, हारा हुआ ये प्राणी चरणो मे पसरा है, तेरा वादा याद दिलाने तेरे द्वार आया हूं... हर बार मैं खुद को लाचार पाता हूं।। मेरे साथ खड़ा हो जा बस इतना ही चाहूं, जीवन कि बाजी फिर मैं हार नही पाऊं, अरमां ये हर्ष लिये हर बार आता हूं... हर बार मैं खुद को लाचार पाता हूं। तेरे रहते क्यूं बाबा मैं हार जाता हूं।।

बन्द कमरो सी जिंदगी


बन्द कमरो सी जिंदगी,
कोई खोलता ही नही,
सबकी जुंबा पर ताले है,
कोई राज-ए-दिल बोलता ही नही।।

चेहरे पर चेहरा, चेहरे पर मुखौटा,
मुखैटे में छुपे सच को,
कोई जानता ही नही,
सबकी जुंबा पर ताले है,
कोई राज-ए-दिल बोलता ही नही।।

जो अंधेरे में उठते है,
अंधेरे में सो जाते है,
उनके उजाले की दास्‍तां,
कोई जानता ही नही,
सबकी जुंबा पर ताले है,
कोई राज-ए-दिल बोलता ही नही।।

सब कुछ पाने की जद्दोजहद में,
किए गुनाहों को कोई मानता ही नही,
सब कुछ खोने का डर सब में है,
पर कोई मानता ही नही।
बन्द कमरो सी जिंदगी,
कोई खोलता ही नही,
सबकी जुंबा पर ताले है,
कोई राज-ए-दिल बोलता ही नही।।

@SilentWord9
Written By Anshul

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